अब तुम खुद बताओ कैसे
जलाऊँ अगरबत्ती। घर से निकलते वक़्त मम्मी ने पचास हज़ार बार कहा था,
हर रोज़ शाम को भगवान के सामने दो अगरबत्तियाँ जला दिया करना। उस वक़्त ना ध्यान
दिया ना ही सोचा था कि दो अगरबत्तियाँ जलाना भी इतना मुश्किल होगा। नास्तिक थोड़े
ही हूँ मैं.... बहुत विश्वास है भगवान मे मेरा लेकिन भगवान को एक कमोडिटी बना कर
एक कोने मे सजा कर अपने विश्वास को ओब्जेक्टिफ़ाई मैं नही कर सकती।
शामे तो इस नए घर मे कभी
बीती ही नही... ना ही बिताने की कभी कोशिश की गयी। हमेशा से शामे मेरे लिए बहुत
मुश्किल रही हैं। भागती रही हूँ शामों से। कोशिश करती रही हूँ कि सामना ही ना
करना पड़े शामों का इसलिए कभी डोमिनोज़, कभी शॉपिंग, कभी बेमतलब भीड़ मे घूमना,
कभी बेवजह दोस्तों को पार्टी के बहाने अपने घर बुला लेना।
फिर भी जब कभी गाहे बगाहे
मन बना कर, “एक अच्छी लड़की” की तरह कोशिश भी की अगरबत्ती
सुलगाने की तो उस धुएँ से डिट्टो वही महक आई जो तुम्हारी अंगुलियों से आती थी
सिगरेट बुझाने के बाद....
अब तुम खुद ही बताओ कैसे
जलाऊँ मैं अगरबत्ती.....
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