मन के भगोने के तलुए से
चिपकी बैठी....
तुम्हारी यादें....
बहुत खुरच खुरच के निकाला,
पर मुई जली तुम्हारी
यादें...
छूटी ही नहीं....
चिपकी रहीं….
भर कर पानी भगोने मे
रख दिया था कुछ साल
पहले...
अब लगता है यही समय है
जली खुरचन छुड़ाने का....
अब तो ढीली पड चुकी हैं...
तुम्हारी यादें....
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