Tuesday, August 6, 2013

तुम बहुत सुंदर हो....


तुम बहुत सुंदर हो....
तुम्हारी आँखों मे अथाह मासूमियत भरी पड़ी है...
तुम्हारे सुदर्शन इस मुख पर यह तीखी नाक तराशी गयी है....
तुम्हें देखना मुझे बेहद पसंद है....
तुम्हें देखते ही रहना मुझे अच्छा लगता है....
पर....तुमसे एक शिकायत है.....
तुम भीतर से इतने खोखले क्यूँ हो......
जब भी कभी तुम्हारी आँखों मे झाँकूँ तो लगता है....
मानो किसी नन्हें से जीव ने अपने रहने के लिए एक बिल बनाया
उससे खूब गहरा और गरम रखा...पर शायद खुद उसमे रहना ही भूल गया....
नितांत सन्नाटा.....
ये सन्नाटा किसी तूफान से पहले का तो हो ही नहीं सकता...
क्योंकि तुम्हारे भीतर तो कोई तूफान ही नहीं है.....
ये तो कभी न बस पायी बस्ती का सूनापन है.....
जैसे प्रकृति ने यहाँ कुछ बंदोबस्त किया ही नहीं.......
किसी मरुस्थल जैसा नहीं.....वहाँ तो फिर भी थोड़ी चेतना जागती रहती है......
किसी हिमपर्वत जैसा भी नहीं.....वहाँ भी अक्सर चट्टाने सरकती रहती हैं.......
तुम तो शायद एक निर्जन मैदान सरीखे हो.....न ही कोई हलचल न ही जीवन के कोई भी अवशेष....
न तो जड़ हो न ही चैतन्य.....
फिर भी....तुम बहुत सुंदर हो.....
काश ये रूप तुम्हारा इस ऊपरी परत से कुछ अंदर रिस पाता....
काश तुम्हारे मन के भीतर हल्की ही सही एकाध परतें बना पाता....
काश तुम्हारी खूबसूरत आँखों मे तैरने भर की ही सही कुछ गहराई तो होती.....
काश तुम्हारी तीखी नाक अपनी ये धार तुम्हारी सोच को उधार दे पाती....
काश तुम ये जान पाते कि इस हाड़ मांस का “ सौन्दर्य” से कुछ खास संबंध नहीं है.....
तो सच मानो....मुझे ये कहने मे और भी रस आता कि तुम बहुत सुंदर हो........ 
                                           

                                                   --मौलश्री कुलकर्णी

5 comments:

yashoda Agrawal said...

वर्ड व्हेरिफिकेशन हटाइये
लोग कमेंट करने से कतराते हैं

moulshree kulkarni said...

सुझाव हेतु धन्यवाद.साथ ही लिंक शेयर करने हेतु आभार...

Anita said...

खरी खरी बात ..

सुशील कुमार जोशी said...

सुंदर !

ब्लाग को कोई फौलो करना चाहे तो उसके लिये गैजेट नहीं जोड़ा है किसी को कैसे पता चलेगा की किस दिन आपने कुछ लिखा है और पोस्ट किया है ?

moulshree kulkarni said...

Sushil ji, mujhe abhi is vishay me jankari nahi th...mera dhyan is aur akarshit karne hetu dhanyawad...