Tuesday, July 30, 2013

स्वाद

               
इन मीठे, खट्टे, तीखे अनगिनत स्वादों के बीच मिला है मुझे कुछ.....
फीका सा....
और यकीन मानो मुझे जंच भी गया है
ये फीकापन......
कुछ नया तो है इसमे.....
जो सच्चा है...सादा है....
चटख रंगों का....इतराते मसालों का...
चहकती ख़ुशबुओं का दिखावा नहीं हैं इसमे....
पानी जैसा स्वादहीन भी नहीं...
कि जिसमे घुल जाए उस जैसा हो जाए....
इसकी अपनी एक पहचान है जो मुझे भाती है…..
एक स्वाद है इसका अपना.....
फीका....
किसी ने कभी पूछा था मुझसे...
इसमे ऐसा क्या खास है????
बिन सोचे ही कहा था मैंने,
“इसका मुझ जैसा ना होना......”

                            ---मौलश्री कुलकर्णी
  

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