Tuesday, July 30, 2013

मेरे आखिरी परनाम.....


सुनो....मुझे मत याद आओ तुम...
मुझे अब भूल जाओ तुम...
तुम्हारी हर कविता के मैं अब भी संग चलती हूँ
तुम्हारी हर ग़ज़ल हर गीत सुन अब भी मचलती हूँ
मेरी छोटी सी बिटिया है वो अक्सर पूछा करती है
तुम्हारे गीत सुनकर या कि पढ़कर क्यूँ मैं रोती हूँ
उसे कैसे बताऊँ गीत ये बस गीत थोड़े हैं
ये मेरी धडकनों के वास्ते इलज़ाम रखे हैं
बहुत पहले कभी छू कर के आगे आ गयी थी जो
उसी चौखट पे मेरे आखिरी परनाम रखे हैं
तुम्हारे गीत ग़ज़लों में जो अक्सर आते जाते थे
सुनो...वो ही मेरी दो बच्चियों के नाम रखे हैं
मुझे जीना है अब अपनी नयी राहें बनाओ तुम
मुझे मत याद आओ तुम...
मुझे अब भूल जाओ तुम...
सुनो....


                        ----मौलश्री कुलकर्णी                                                                                                                                          

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